“गीता प्रवचन” ग्रन्थ से –
प्रवचन-४१
(२५-११-७९)
‘भगवान् की विशेष विभूतियाँ’
बड़भागिन गीतानुयायी मण्डली !
कुछ लोग प्राय: इस दृष्टि से कुछ समय पश्चात् ही जाप करना छोड़ बैठते हैं कि जाप में मन तो एकाग्र होता नहीं । तन को तो जैसे-कैसे हम बिठा लेते हैं परन्तु मन बन्दर की भांति इधर-उधर उछलता-कूदता रहता है, अत: पूर्ण एकाग्रता बन नहीं पाती और परिणामस्वरूप नाम-जाप करने में रस भी नही आता । परन्तु ऐसा करना नितान्त अनुचित है । मन एकाग्र करने के लिए बार-बार अभ्यास करते रहना चाहिये । इस में ज़रा भर भी उकताना नहीं चाहिये । मन को हर समय धैर्य बांधना चाहिये कि छोटी-छोटी यूनिवर्सिटी की डिग्रियां लेने के लिए कितने ही वर्ष लग जाते हैं फिर भगवान् जी की भक्ति एवं प्रेम से बढ़कर तो कोई डिग्री है ही नहीं । अत: इस में कुछ समय लग भी जाता है तो क्या हुआ । आखिर तो मन एकाग्र होगा – आज न तो कल सही, आखिर तो रस आयेगा – आज न तो कल सही; आखिर तो मैं अपने-आप में गुम हो जाऊँगा – आज न तो कल सही; आखिर तो मेरे इष्टदेव मुझे अपनाएँगे – आज न तो कल सही; आखिर मैंने इस संसार चक्र से छूट जाना है – आज न तो कल सही ।
सचमुच, कितना अच्छा भाव है मन को उत्साह देने का –
‘आज न तो कल सही । ’
(If not today then tomorrow)
अजी, करते-करते तो पत्थर भी घिस जाता है, बार-बार रस्सी के एक ही लोहे पर आने-जाने से लोहा भी समय पाकर टूट जाता है, तो क्या हमारा मन काबू में न आयेगा? क्यों नहीं ! आयेगा और अवश्य आयेगा । बस, आवश्यकता है बिना उकताये हुए मन से निरन्तर प्रातःकाल ब्रह्म-मुहूर्त में उठ कर नाम-जाप का अभ्यास करने की ! तभी तो हमारे अनुभवी महापुरुष कह गये हैं –
करत-करत अभ्यास के,
जड़मति होत सुजान ।
रसरि आवत-जात ते,
सिल पर होत निशान ।।